सार
– फर्जी शस्त्र लाइसेंस मामले में क्लर्क पर गाज गिरी, किसी अफसर पर नहीं हुई कार्रवाई
– तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट समेत कई अन्य अफसरों का चहेता था सहायक लिपिक विनीत
सांकेतिक तस्वीर
– फोटो : सोशल मीडिया
शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में दोषी पाए गए सहायक शस्त्र लिपिक विनीत तिवारी की बर्खास्तगी कुछ बड़े सवाल छोड़ गई है। यह कि प्रशासनिक चूक के इतने बड़े मामले में किसी अफसर पर आंच तक नहीं आई? एक लिपिक ने 180 में से 90 शस्त्र लाइसेंस फर्जी तरीके से बना दिया और ऊपर वालों को इसकी हवा तक नहीं लगी।
प्रशासनिक अमले में चर्चा अब इस बात की है कि बहती गंगा में हाथ सभी ने धोए, मगर डूबा सिर्फ एक। यह संभव नहीं कि किसी डीएम के कार्यकाल में आधे शस्त्र लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी किए जाएं और किसी को भनक तक न हो।
बताया तो यह भी जा रहा है कि विनीत के जरिये कमाई का हिस्सा कलक्ट्रेट की हर मजबूत कुर्सी तक पहुंचता था। विनीत तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट और असलहा अनुभाग के प्रभारी रवि प्रकाश श्रीवास्तव के अलावा कई अन्य अफसरों का चहेता था।
उनकी प्रशासनिक चूक की हद देखिए, विनीत के जरिये जारी की गई फर्जी शस्त्र लाइसेंस की बुकलेट में तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट के असली हस्ताक्षर मिले। दरअसल, विनीत असली लाइसेंस बनाने में भी वसूली करता था, लेकिन फर्जीवाड़ा भी समानांतर रूप से करता रहा।
यानी कमाई दो रास्तों से हो रही थी। ऐसे में विनीत की कारस्तानी पर सवाल कौन उठाता? फर्जी लाइसेंस मामले में पकड़े जाने के बाद विनीत ने जब जहर खाकर जान देने का स्वांग रचा, तब कई अफसरों तक चढ़ावा पहुंचाए जाने का आरोप लगाया था। तब एडीएम सिटी विवेक श्रीवास्तव थे, जो अब दूसरे जिले में तैनात हैं।
एसीएम ऑफिस से ट्रांसफर होकर आया था
विनीत तिवारी को लाइसेंस अनुभाग में वर्तमान एडीएम (वित्त एवं राजस्व) वीरेंद्र प्रसाद पांडेय लाए थे। दरअसल, कलक्ट्रेट में निरीक्षण के दौरान तत्कालीन डीएम विजय विश्वास पंत ने लाइसेंस अनुभाग का निरीक्षण किया था। उस समय तैनात कर्मचारी कार्तिकेय की कई तरह की कमियां सामने आई थीं।
डीएम ने कार्तिकेय को हटाकर किसी अन्य की तैनाती के आदेश दिए थे। तब एडीएम (वित्त एवं राजस्व) ने कार्तिकेय का ट्रांसफर एसीएम-6 के कार्यालय में कर वहां अहलमद रहे विनीत को लाइसेंस अनुभाग में तैनाती दी थी।
मीडिया में लीक होेने के बाद शुरू हुई थी जांच
कलक्ट्रेट में फर्जी लाइसेंस बनने का खुलासा होने के बाद अफसरों ने कई दिन तक मामले को दबाने की कोशिश की थी। मामला तूल पकड़ने लगा तो तत्कालीन जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत ने तत्कालीन एसीएम सप्तम (वर्तमान में एसडीएम नर्वल) अमित ओमर को जांच सौंपी।
इसमें एक-एक परतें उधड़ती चली गईं। तत्कालीन डीएम के कार्यकाल में बने कुल 180 लाइसेंस में विनीत ने 90 लाइसेंस फर्जी तरीके से बनाए थे। इनमें से 88 पर तत्कालीन डीएम के हस्ताक्षर को स्कैन करके इस्तेमाल किया गया था। यह मामला अगस्त 2019 में सामने आया था। तब विनीत और उसके कारीगर साथी जितेंद्र, मुकुल, जैकी, विशाल पर मुकदमा दर्ज कराया गया था।
एक लाइसेंस के लिए पांच-पांच लाख की वसूली
असलहा रखने के शौकीनों ने एक फर्जी लाइसेंस के लिए पांच-पांच लाख रुपये तक की रिश्वत दी। इसमें शहर के कई उद्योगपति, टेनरी संचालक, बिल्डर और नेता तक शामिल हैं। रिश्वत की इस लूट में दो, चार, 10 नहीं, पूरे 90 लाइसेंस फर्जी बने। असली लाइसेंस में भी 20 हजार से एक लाख रुपये तक की वसूली होती थी। बिकरू कांड के बाद गठित एसआईटी की जांच में भी इसकी पुष्टि हुई थी। मगर बहुत से ऐसे बिंदु हैं, जो जांच का हिस्सा कभी नहीं बन पाए।
विस्तार
शस्त्र लाइसेंस फर्जीवाड़े में दोषी पाए गए सहायक शस्त्र लिपिक विनीत तिवारी की बर्खास्तगी कुछ बड़े सवाल छोड़ गई है। यह कि प्रशासनिक चूक के इतने बड़े मामले में किसी अफसर पर आंच तक नहीं आई? एक लिपिक ने 180 में से 90 शस्त्र लाइसेंस फर्जी तरीके से बना दिया और ऊपर वालों को इसकी हवा तक नहीं लगी।
प्रशासनिक अमले में चर्चा अब इस बात की है कि बहती गंगा में हाथ सभी ने धोए, मगर डूबा सिर्फ एक। यह संभव नहीं कि किसी डीएम के कार्यकाल में आधे शस्त्र लाइसेंस फर्जी तरीके से जारी किए जाएं और किसी को भनक तक न हो।
बताया तो यह भी जा रहा है कि विनीत के जरिये कमाई का हिस्सा कलक्ट्रेट की हर मजबूत कुर्सी तक पहुंचता था। विनीत तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट और असलहा अनुभाग के प्रभारी रवि प्रकाश श्रीवास्तव के अलावा कई अन्य अफसरों का चहेता था।
उनकी प्रशासनिक चूक की हद देखिए, विनीत के जरिये जारी की गई फर्जी शस्त्र लाइसेंस की बुकलेट में तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट के असली हस्ताक्षर मिले। दरअसल, विनीत असली लाइसेंस बनाने में भी वसूली करता था, लेकिन फर्जीवाड़ा भी समानांतर रूप से करता रहा।
यानी कमाई दो रास्तों से हो रही थी। ऐसे में विनीत की कारस्तानी पर सवाल कौन उठाता? फर्जी लाइसेंस मामले में पकड़े जाने के बाद विनीत ने जब जहर खाकर जान देने का स्वांग रचा, तब कई अफसरों तक चढ़ावा पहुंचाए जाने का आरोप लगाया था। तब एडीएम सिटी विवेक श्रीवास्तव थे, जो अब दूसरे जिले में तैनात हैं।
एसीएम ऑफिस से ट्रांसफर होकर आया था
विनीत तिवारी को लाइसेंस अनुभाग में वर्तमान एडीएम (वित्त एवं राजस्व) वीरेंद्र प्रसाद पांडेय लाए थे। दरअसल, कलक्ट्रेट में निरीक्षण के दौरान तत्कालीन डीएम विजय विश्वास पंत ने लाइसेंस अनुभाग का निरीक्षण किया था। उस समय तैनात कर्मचारी कार्तिकेय की कई तरह की कमियां सामने आई थीं।
डीएम ने कार्तिकेय को हटाकर किसी अन्य की तैनाती के आदेश दिए थे। तब एडीएम (वित्त एवं राजस्व) ने कार्तिकेय का ट्रांसफर एसीएम-6 के कार्यालय में कर वहां अहलमद रहे विनीत को लाइसेंस अनुभाग में तैनाती दी थी।
मीडिया में लीक होेने के बाद शुरू हुई थी जांच
कलक्ट्रेट में फर्जी लाइसेंस बनने का खुलासा होने के बाद अफसरों ने कई दिन तक मामले को दबाने की कोशिश की थी। मामला तूल पकड़ने लगा तो तत्कालीन जिलाधिकारी विजय विश्वास पंत ने तत्कालीन एसीएम सप्तम (वर्तमान में एसडीएम नर्वल) अमित ओमर को जांच सौंपी।
इसमें एक-एक परतें उधड़ती चली गईं। तत्कालीन डीएम के कार्यकाल में बने कुल 180 लाइसेंस में विनीत ने 90 लाइसेंस फर्जी तरीके से बनाए थे। इनमें से 88 पर तत्कालीन डीएम के हस्ताक्षर को स्कैन करके इस्तेमाल किया गया था। यह मामला अगस्त 2019 में सामने आया था। तब विनीत और उसके कारीगर साथी जितेंद्र, मुकुल, जैकी, विशाल पर मुकदमा दर्ज कराया गया था।
एक लाइसेंस के लिए पांच-पांच लाख की वसूली
असलहा रखने के शौकीनों ने एक फर्जी लाइसेंस के लिए पांच-पांच लाख रुपये तक की रिश्वत दी। इसमें शहर के कई उद्योगपति, टेनरी संचालक, बिल्डर और नेता तक शामिल हैं। रिश्वत की इस लूट में दो, चार, 10 नहीं, पूरे 90 लाइसेंस फर्जी बने। असली लाइसेंस में भी 20 हजार से एक लाख रुपये तक की वसूली होती थी। बिकरू कांड के बाद गठित एसआईटी की जांच में भी इसकी पुष्टि हुई थी। मगर बहुत से ऐसे बिंदु हैं, जो जांच का हिस्सा कभी नहीं बन पाए।
सहायक शस्त्र लिपिक विनीत तिवारी की बर्खास्तगी विभागीय कार्रवाई के तहत हुई है। यह एक कर्मचारी के कृत्य और उसके आचरण पर कार्रवाई है। तत्कालीन एसीएम की जांच में किसी बड़े अफसर का नाम नहीं आया है। चूंकि इस मामले में एफआईआर दर्ज की है, इसलिए पुलिस की जांच में जो लोग आरोपी पाए जाएंगे, उन पर कानूनी कार्रवाई की जाएगी। – आलोक तिवारी, जिलाधिकारी कानपुर नगर
This content is from – Amar Ujala News